Tuesday, September 8, 2009

इक गुनाह किया

इक गुनाह किया
तुझे ना दिल की बात बता कर
गर बता देता तो शायद तुम
रख देती इससे भी बड़ा
गुनाहगार बना कर

मंजिल ना पाई तो क्या
कोई गम नहीं इस बात का
छुप छुप के देखा किये तुझे
अपने सपनों के महल
गिरा गिरा कर

हम लेते रहे ता उम्र
तेरा नाम अपनी जुबां पर
समझा तुझे अपना
सोचा था रखेंगे तुझे
पलकों पे बिठा कर

दीवानगी तो जैसे
हद की हद से भी गुजर गयी
जब पूजा तुझे
हमने अपना
देवता बना कर

उम्र तो हम शायद
गुजार ही देते तेरे इंतज़ार में
पर तू किसी और की होली
हमें कुछ मीठे मीठे
सपनें दिखा कर