Friday, September 13, 2013

अब क्या कहें क्या ना कहें


अब क्या कहें क्या ना कहें
कहने सुनने को अब क्या रह गया

एक आँसू निकला तेरी याद में
और गाल पर गिर के बह गया

सारी ज़िंदगी का अफ़साना 
जैसे एक पल में कह गया 

यादों की बस्ती भी सूनी है अब
सूखा सा इक दरिया रह गया

ज़िंदगी का सूरज अब ढलने को है
आसमां में अब अधेंरा ही ढह गया

Saturday, April 7, 2012

जब जब तेरी याद आती है

जब जब तेरी याद आती है
थोड़ा सा मैं जी लेता हूं

जब जब तेरा ज़िक्र होता है
अपने होठों को सी लेता हूं

जब जब भी तनहा होता हूं
अपने आंसूओं को पी लेता हूं

जब जब मिलने की चाह होती है
ख़्वाबों की कशती खे लेता हूं

जब जब तेरी तस्वीर देखता हूं
घुट घुट कर मैं जी लेता हूं



Monday, November 29, 2010

मेरा आख़िरी पैग़ाम


चाहा था सनम के आंसू पोंछ दूं
जाते जाते मगर ये हो ना सका

इक काँधे की ज़रुरत थी मुझको भी
उसके काँधे सर रख मैं रो ना सका

अपनी जुदाई के गम बढे कुछ इतने
उसके दुःख अपने काँधे ढो ना सका

ज़माने का डर और घर की मजबूरी
जाते जाते मैं उसका हो ना सका

उसके आंसू पोछना चाहता था
खुद चाहते हुए भी रो ना सका

दूर जाके भी उसे दिल में रखूंगा कैसे
ये सोच सोच रातों को सो ना सका

Friday, January 8, 2010

मान लिया तुझे अब अपना ख़ुदा

ख़ुदा को कर दिया खुद से जुदा
मान लिया तुझे अब अपना ख़ुदा

मुझे ना रही ख़ुदा की ज़रुरत तब से
मेरा ख़ुदा तुझमें समा गया जब से

मेरी नैया की पतवार है अब तेरे हाथ में
डुबा दे अब या ले चल अपने साथ में

कभी कभी मुझे अपने ख़ुदा से डर सा लगता है
जब मेरा ख़ुदा दूसरों पर मेहरबान सा लगता है

दिल को समझाता हूँ पर दिल है के मानता ही नहीं
शायद मैं अपने ख़ुदा को ठीक से जानता ही नहीं

अंजाम कुछ भी हो मुझे कभी शिकायत ना होगी
ख़ुदा की शिकायत करने की तो कोई अदालत ना होगी

मेरी इबादत में कमी हो तो मुझे बता देना
खुद से अलग करके कभी ना सज़ा देना

Tuesday, September 8, 2009

इक गुनाह किया

इक गुनाह किया
तुझे ना दिल की बात बता कर
गर बता देता तो शायद तुम
रख देती इससे भी बड़ा
गुनाहगार बना कर

मंजिल ना पाई तो क्या
कोई गम नहीं इस बात का
छुप छुप के देखा किये तुझे
अपने सपनों के महल
गिरा गिरा कर

हम लेते रहे ता उम्र
तेरा नाम अपनी जुबां पर
समझा तुझे अपना
सोचा था रखेंगे तुझे
पलकों पे बिठा कर

दीवानगी तो जैसे
हद की हद से भी गुजर गयी
जब पूजा तुझे
हमने अपना
देवता बना कर

उम्र तो हम शायद
गुजार ही देते तेरे इंतज़ार में
पर तू किसी और की होली
हमें कुछ मीठे मीठे
सपनें दिखा कर

Tuesday, August 11, 2009

रिश्ते बनते नहीं कभी सिर्फ किसी को चाहने से

ये जिंदगी के रिश्ते भी
कितने अजीब हैं
जो कलतक अजनबी थे
आज कितने करीब हैं

बचपन के दोस्त आज
दुश्मन हुए बैठे हैं
क्योंकि आज हमारा
इक नया रफीक है

दुनिया से हार चुके थे
आज दिल भी हार गए
कल के बदनसीब हम
आज खुश नसीब हैं

ना उम्मीदियों से अपना
था कल तक गहरा नाता
अब अच्छी कटेगी जिंदगी
यही इक उम्मीद है

रिश्ते बनते नहीं कभी
सिर्फ किसी को चाहने से
प्यार उसी को मिलता है
होता बुलंद जिसका नसीब है

Tuesday, July 21, 2009

सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

ना बेचैनियाँ ना बेताबियाँ ना इंतज़ार के वो गुबार
नाउमीदियाँ नाखुशहालियाँ ना आयी कोई बहार
क्यूं बढ़ता जा रहा है हर पल ये जुनून
सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

पहले तो उनकी गली के हर मोड़ पर
उनकी राह तका करते थे दौड़ दौड़ कर
अब कयूं जिंदगी के इस मोड़ पर आके
रास्ते सब बंद से हैं उन्हें अपना बनाके

उन्हें पाके लगा जैसे मुकाम कोई पा लिया
खिजा में जैसे बहार ने हो गले लगा लिया
अब नजदीकियों से दम क्यूं घुटने लगा है
बुलबुल अब सैयाद सा क्यूं लगने लगा है

थोडा दूर हटो तो शायद कुछ सोच पाऊँ
कहीं से खोई खुशीआं वापस ढूढ़ लाऊँ
जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गया