Tuesday, July 21, 2009

सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

ना बेचैनियाँ ना बेताबियाँ ना इंतज़ार के वो गुबार
नाउमीदियाँ नाखुशहालियाँ ना आयी कोई बहार
क्यूं बढ़ता जा रहा है हर पल ये जुनून
सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

पहले तो उनकी गली के हर मोड़ पर
उनकी राह तका करते थे दौड़ दौड़ कर
अब कयूं जिंदगी के इस मोड़ पर आके
रास्ते सब बंद से हैं उन्हें अपना बनाके

उन्हें पाके लगा जैसे मुकाम कोई पा लिया
खिजा में जैसे बहार ने हो गले लगा लिया
अब नजदीकियों से दम क्यूं घुटने लगा है
बुलबुल अब सैयाद सा क्यूं लगने लगा है

थोडा दूर हटो तो शायद कुछ सोच पाऊँ
कहीं से खोई खुशीआं वापस ढूढ़ लाऊँ
जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गया

6 comments:

  1. जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
    क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गया
    Because of time & life...
    this is sad but it's true...

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  2. थोडा दूर हटो तो शायद कुछ सोच पाऊँ
    कहीं से खोई खुशीआं वापस ढूढ़ लाऊँ
    जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
    क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गया


    -ह्म्म!! भावपूर्ण!

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  3. पहले तो उनकी गली के हर मोड़ पर
    उनकी राह तका करते थे दौड़ दौड़ कर
    अब कयूं जिंदगी के इस मोड़ पर आके
    रास्ते सब बंद से हैं उन्हें अपना बनाके
    sunder rachana,yahi zindagi hai

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  4. थोडा दूर हटो तो शायद कुछ सोच पाऊँ
    कहीं से खोई खुशीआं वापस ढूढ़ लाऊँ
    जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
    क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गय
    यही तो आदमी की फितरत है जो है उसे जीने की बजाये जो नहीं है उस ओर भागता है बहुत सुन्दर रचना बधाई

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  5. पहले तो उनकी गली के हर मोड़ पर
    उनकी राह तका करते थे दौड़ दौड़ कर
    अब कयूं जिंदगी के इस मोड़ पर आके
    रास्ते सब बंद से हैं उन्हें अपना बनाके

    bahut hi sundar

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  6. मित्रो तथा शुभचिंतको
    मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
    तारीफ़ के साथ कुछ सुझाव और आलोचना
    भी हो तो मुझे और बढावा मिलेगा शायद कुछ
    और भी अच्छा लिख सकूं
    इंदर

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