Tuesday, August 11, 2009

रिश्ते बनते नहीं कभी सिर्फ किसी को चाहने से

ये जिंदगी के रिश्ते भी
कितने अजीब हैं
जो कलतक अजनबी थे
आज कितने करीब हैं

बचपन के दोस्त आज
दुश्मन हुए बैठे हैं
क्योंकि आज हमारा
इक नया रफीक है

दुनिया से हार चुके थे
आज दिल भी हार गए
कल के बदनसीब हम
आज खुश नसीब हैं

ना उम्मीदियों से अपना
था कल तक गहरा नाता
अब अच्छी कटेगी जिंदगी
यही इक उम्मीद है

रिश्ते बनते नहीं कभी
सिर्फ किसी को चाहने से
प्यार उसी को मिलता है
होता बुलंद जिसका नसीब है

5 comments:

  1. रिश्ते बनते नहीं कभी
    सिर्फ किसी को चाहने से
    सच है ..!!

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  2. रिश्ते बनते नहीं कभी
    सिर्फ किसी को चाहने से
    प्यार उसी को मिलता है
    होता बुलंद जिसका नसीब ह
    बहुत सुन्दर और यथार्थ के करीब अभिव्यक्ति के लिये बधाई

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  3. rishtei bantei hein
    bhawnaao ke dene lene se
    shradha pyaar etbaar
    ke kayam hone se
    tike rahte hein wishwaas par
    lakin jub tak ma mile malik kimanjoori
    ek tarfa pyaar rishta nahi kehlata

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