मान लिया तुझे अब अपना ख़ुदा
मुझे ना रही ख़ुदा की ज़रुरत तब से
मेरा ख़ुदा तुझमें समा गया जब से
मेरी नैया की पतवार है अब तेरे हाथ में
डुबा दे अब या ले चल अपने साथ में
कभी कभी मुझे अपने ख़ुदा से डर सा लगता है
जब मेरा ख़ुदा दूसरों पर मेहरबान सा लगता है
दिल को समझाता हूँ पर दिल है के मानता ही नहीं
शायद मैं अपने ख़ुदा को ठीक से जानता ही नहीं
अंजाम कुछ भी हो मुझे कभी शिकायत ना होगी
ख़ुदा की शिकायत करने की तो कोई अदालत ना होगी
मेरी इबादत में कमी हो तो मुझे बता देना
खुद से अलग करके कभी ना सज़ा देना