अब क्या कहें क्या ना कहें
कहने सुनने को अब क्या रह गया
एक आँसू निकला तेरी याद में
और गाल पर गिर के बह गया
सारी ज़िंदगी का अफ़साना
जैसे एक पल में कह गया
यादों की बस्ती भी सूनी है अब
सूखा सा इक दरिया रह गया
ज़िंदगी का सूरज अब ढलने को है
आसमां में अब अधेंरा ही ढह गया