रातों में तारे गिनता हूँ
खाबों को दिन में बुनता हूँ
इक इक याद को चुनता हूँ
संगीत हवा में सुनता हूँ
कहीं ये प्यार तो नहीं
ख़यालों के सागर में बहता हूँ
बस अपनी धुन में रहता हूँ
कभी अपनी तुझसे सुनता हूँ
कभी तेरी तुझसे कहता हूँ
कहीं ये प्यार तो नहीं
कोई जान से प्यारा लगता है
जीने का सहारा लगता है
इंतज़ार सा किसी का रहता है
बेकरार सा दिल भटकता है
कहीं ये प्यार तो नहीं
होश में जब भी रहता हूँ
बस आहें भरता रहता हूँ
शक की नज़रें उठती हैं
जब कुछ भी नहीं मैं कहता हूँ
कहीं ये प्यार तो नहीं
सामने जब वो आती है
इक बिजली सी गिर जाती है
बेजान सा दिल धड़कता है
दिल पे छुरी चल जाती है
कहीं ये प्यार तो नहीं