Tuesday, June 9, 2009

कहीं ये प्यार तो नहीं

रातों में तारे गिनता हूँ
खाबों को दिन में बुनता हूँ
इक इक याद को चुनता हूँ
संगीत हवा में सुनता हूँ

कहीं ये प्यार तो नहीं

ख़यालों के सागर में बहता हूँ
बस अपनी धुन में रहता हूँ
कभी अपनी तुझसे सुनता हूँ
कभी तेरी तुझसे कहता हूँ

कहीं ये प्यार तो नहीं

कोई जान से प्यारा लगता है
जीने का सहारा लगता है
इंतज़ार सा किसी का रहता है
बेकरार सा दिल भटकता है

कहीं ये प्यार तो नहीं

होश में जब भी रहता हूँ
बस आहें भरता रहता हूँ
शक की नज़रें उठती हैं
जब कुछ भी नहीं मैं कहता हूँ

कहीं ये प्यार तो नहीं

सामने जब वो आती है
इक बिजली सी गिर जाती है
बेजान सा दिल धड़कता है
दिल पे छुरी चल जाती है

कहीं ये प्यार तो नहीं

3 comments:

  1. भला पूछते आप क्यों किसको कहते प्यार।
    हर पल जीवन प्यार है प्यार भरा संसार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. bahut khoob janab...ye masla hee aisa hai ke kab ho jaaye khabar nahi aur ho bhi jaaye to poochte reha jaate hein ke kya yehi pyaar hai ;)

    daad kabool farmayein
    zorr-e-kalam aur jyada

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  3. kuch aisa hi lagta ha ji
    bahut khoob likhte ho ji

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