आहट भी नहीं होती दिल में इक खंजर सा चल जाता है
कोई शिकवा नहीं के तू मेरे दिल में घर कर बैठी है
भला अपनों पर कोई ऐसे इल्जाम लगाता है
इसके पहले के तेरे ख्यालों को में समेट सकूं
वक़्त है के हाथ से फिसल सा जाता है
तेरे ख्यालों को सहेज के रखने की चाह तो बहुत होती है
हाथ कलम, दवात और कागज़ तक नहीं पहुँच पाता है
तेरे ख़याल तो बहुत आते हैं पर कोई खबर नहीं आती
डाकिया भी अपना सा मुंह लेकर चला आता है
ख्यालों से निकलने पर नब्ज़ रुक सी जाती है
हकीम इसे लाइलाज कह के दवा देने से कतराता है
ख्यालों के सहारे तो जिन्दगी काटनी मुश्किल होगी
कभी आके तो मिल तुझे देखने को दिल ललचाता है
ishq se bhari hui rachna
ReplyDeletewaah mazaa aa gaya
अनिल कान्त जी
ReplyDeleteहोंसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
dil chahta hai koi paar kare to yoonhi kare
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