Tuesday, July 21, 2009

सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

ना बेचैनियाँ ना बेताबियाँ ना इंतज़ार के वो गुबार
नाउमीदियाँ नाखुशहालियाँ ना आयी कोई बहार
क्यूं बढ़ता जा रहा है हर पल ये जुनून
सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

पहले तो उनकी गली के हर मोड़ पर
उनकी राह तका करते थे दौड़ दौड़ कर
अब कयूं जिंदगी के इस मोड़ पर आके
रास्ते सब बंद से हैं उन्हें अपना बनाके

उन्हें पाके लगा जैसे मुकाम कोई पा लिया
खिजा में जैसे बहार ने हो गले लगा लिया
अब नजदीकियों से दम क्यूं घुटने लगा है
बुलबुल अब सैयाद सा क्यूं लगने लगा है

थोडा दूर हटो तो शायद कुछ सोच पाऊँ
कहीं से खोई खुशीआं वापस ढूढ़ लाऊँ
जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गया

Tuesday, July 7, 2009

वो दिन कहाँ हवा हुए

कभी मिली फुर्सत तो सोचेंगे
वो दिन कहाँ हवा हुए
जब छतें फांद कर
पतंगें थे लूटा करते
कंचे चटकाते और
गुल्ली डंडा भी खेलते
और शाम को यारों के संग
खोमचे पे चाट खाया करते थे

गोल गप्पे का खट्टा पानी
मुंह से लार सी टपक जाती थी
दही बढे पर मीठी चटनी
डालते ही कैसे छिटक जाती थी
आइस क्रीम गिरा कर कमीज़ पर
शाम को माँ की डांट खाया करते थे

साइकल पर गलियों के
चक्कर लगा कर
डंडे पे अपने
यार को बिठा कर
कभी तलैया किनारे और
कभी यार के घर जाया करते थे

होम वर्क का बहाना बना कर
पिक्चर देखने का वो मज़ा
पकड़े गए तो पिताजी से
मिलती थी रात को सज़ा
स्कूल जाने का कह कर
मेला देखने निकल जाया करते थे

कालेज कि कैंटीन में
लड़कियों से गप्पें लडाना
कभी उनके पैसों से उन्हें ही
चाय, समोसा खिलाना
कभी जेब जो खाली होती थी तो
कैंटीन वाले को पटाया करते थे

नौकरी की तलाश में
जूतों का घिस जाना
मोटर साइकिल में पेट्रोल नहीं
आज पैदल पड़ेगा जाना
इतनी फुरसत होती थी के
दोपहर को खाना खाने घर पे आया करते थे

शादी के बाद हनीमून का
एक तेज गाड़ी के स्टेशन सा गुज़र जाना
बच्चों का लग गया तांता
कैसे ये कभी ना जाना
बच्चों को उंगली पकड़ा कर
दूर दूर तक घुमाया करते थे

अब इस बड़े से शहर में अपनी जवानी
और बच्चों का बचपन जाने कहाँ खो गया
दौड़ भाग कि जिंदगी में
उम्मीदों का सपना खुद ही सो गया
अब वो दिन हवा हुए
जब बन्ने मियाँ फाख्ता उड़ाया करते थे

कभी मिली फुरसत तो सोचेंगे
पर अभी मिला नहीं है वक़्त
शायद अब मरने पर ही
मिल सकेगी ये कम्बख़त
फुरसत................

Monday, July 6, 2009

उसको मैंने क्यूं याद किया

ऐसी क्या मजबूरी थी
ऐसा क्या उपकार किया
जिसने मुझे बरबाद किया
उसको मैंने क्यूं याद किया

इक दिल था तेरे पास मेरा
उसको भी न तू पहचान सकी
कभी यहाँ गिरा कभी वहाँ गिरा
बस टूट गया और हार गया

आहें तो भरीं शिकवे न किये
तिल तिल कर यूं हम जलते रहे
तुझे हंसते देख औरों के संग
झूठी खुशिओं का इज़हार किया

तू मेरी हो न सकी हमदम
दूजों की सजाई तूने महफ़िल
गैरों की बाहों में जा तूने
मेरी चाहत से खिलवाड़ किया

आंसू ना बहे पर जां तो गयी
अब जीने की कोई ख्वाइश ही नहीं
जब तू ना रही तो कुछ भी नहीं
तेरी खुशियों को स्वीकार किया

कभी आन पड़े जो मुसीबत भी
दे देना हलकी दस्तक सी
मैं खड़ा मिलूंगा उसी मोड़ पर
जहां रुखसत तुझको यार किया

Sunday, July 5, 2009

कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

मुश्किलों से मिलते हैं ये लम्हे साथ साथ
आओ करें आज जी भर के मुलाक़ात
अब यूं बार बार जाने की जिद ना करो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

दुनिया की बातें तो हमने बहुत हैं कर लीं
पर दिल है के इन बातों से भरता ही नहीं
अब कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी भी कहो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

दिन, हफ्ते और महीने गुज़र जायेंगे
ऐसे लम्हे ना जाने फिर कब हाथ आयेंगे
आओ इन पलों को आज जी भर के जी लो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

तुम पास हो तो क्यूं आता नहीं यकीं
काश वक़्त आज थम जाये बस यहीं
आज ना जाने का कोई बहाना ही ढूढ़ लो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

पहलू भी बदलती हो तो लगता है तुम बस चली
अभी तो सिर्फ दोपहर हुई है शाम ढली भी नहीं
मेरे तपते दिल मैं इक बारिश बन कर बरसो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

तुम्हारे मन मैं उठे हैं आज बहुत से ख़याल
मेरे भी तन में उठें हैं आज बहुत से बवाल
तनमन एक हो जाने दो बस अब कुछ और ना कहो
कुछ और देर मेरे पास यूं ही बनी रहो

Thursday, July 2, 2009

कभी आते जाते ले जाना

तुम जब मुझसे मिलने आती थी
अपना कुछ न कुछ सामान
जान बूझ कर छोड़ जाती थी
तुम्हारा वो सब सामान
अब भी मेरे घर में रखा है
कभी आते जाते ले जाना

यादों के सहारे
तो जिंदगी नहीं काटी जा सकती
अपनी वो सब मुलाकातें
अब यादें बन कर
मेरे घर के हर कोने में पढ़ी हैं
कभी आते जाते ले जाना

तुमने प्यार का जो इज़हार किया था
कुछ लम्बे लम्बे ख़त लिख कर
तुम्हारे कुछ ख़त पड़े हैं
मेरे तकिये के नीचे
कभी आते जाते ले जाना

तुमने कभी मेरी जिंदगी
महकाई थी फूलों सी
वो कुछ सूखे फूल रखे हैं
मेरी जिंदगी की किताबों में
कभी आते जाते ले जाना

लम्हा लम्हा चुरा कर
कुछ वक़्त साथ था हमने गुज़ारा
इक पल के लिए भी
दूर रहना ना था गवारा
वो वक़्त अब थमा सा खडा है
मेरे घर के गलियारों में
कभी आते जाते ले जाना

मेरे नाम के साथ
अपना नाम लिखा था तुमने
घर की दीवारों पर
घर की राहों पर, आँगन मैं, चिनारों पर
वो नाम अब धुल की परत में ढक गए हैं
कभी आते जाते ले जाना

मेरा भी कोई सामान
शायद गलती से तुम्हारे साथ
चला गया होगा
दिल खो सा गया है
शायद तुम्हारे पास बेज़ार सा पड़ा होगा
कभी आते जाते दे जाना