Tuesday, September 8, 2009

इक गुनाह किया

इक गुनाह किया
तुझे ना दिल की बात बता कर
गर बता देता तो शायद तुम
रख देती इससे भी बड़ा
गुनाहगार बना कर

मंजिल ना पाई तो क्या
कोई गम नहीं इस बात का
छुप छुप के देखा किये तुझे
अपने सपनों के महल
गिरा गिरा कर

हम लेते रहे ता उम्र
तेरा नाम अपनी जुबां पर
समझा तुझे अपना
सोचा था रखेंगे तुझे
पलकों पे बिठा कर

दीवानगी तो जैसे
हद की हद से भी गुजर गयी
जब पूजा तुझे
हमने अपना
देवता बना कर

उम्र तो हम शायद
गुजार ही देते तेरे इंतज़ार में
पर तू किसी और की होली
हमें कुछ मीठे मीठे
सपनें दिखा कर

Tuesday, August 11, 2009

रिश्ते बनते नहीं कभी सिर्फ किसी को चाहने से

ये जिंदगी के रिश्ते भी
कितने अजीब हैं
जो कलतक अजनबी थे
आज कितने करीब हैं

बचपन के दोस्त आज
दुश्मन हुए बैठे हैं
क्योंकि आज हमारा
इक नया रफीक है

दुनिया से हार चुके थे
आज दिल भी हार गए
कल के बदनसीब हम
आज खुश नसीब हैं

ना उम्मीदियों से अपना
था कल तक गहरा नाता
अब अच्छी कटेगी जिंदगी
यही इक उम्मीद है

रिश्ते बनते नहीं कभी
सिर्फ किसी को चाहने से
प्यार उसी को मिलता है
होता बुलंद जिसका नसीब है

Tuesday, July 21, 2009

सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

ना बेचैनियाँ ना बेताबियाँ ना इंतज़ार के वो गुबार
नाउमीदियाँ नाखुशहालियाँ ना आयी कोई बहार
क्यूं बढ़ता जा रहा है हर पल ये जुनून
सोचा था प्यार में मिलेगा इक सुकून

पहले तो उनकी गली के हर मोड़ पर
उनकी राह तका करते थे दौड़ दौड़ कर
अब कयूं जिंदगी के इस मोड़ पर आके
रास्ते सब बंद से हैं उन्हें अपना बनाके

उन्हें पाके लगा जैसे मुकाम कोई पा लिया
खिजा में जैसे बहार ने हो गले लगा लिया
अब नजदीकियों से दम क्यूं घुटने लगा है
बुलबुल अब सैयाद सा क्यूं लगने लगा है

थोडा दूर हटो तो शायद कुछ सोच पाऊँ
कहीं से खोई खुशीआं वापस ढूढ़ लाऊँ
जो कल था भरपूर आज क्या कम हो गया
क्यूं कल की खुशी आज का गम हो गया

Tuesday, July 7, 2009

वो दिन कहाँ हवा हुए

कभी मिली फुर्सत तो सोचेंगे
वो दिन कहाँ हवा हुए
जब छतें फांद कर
पतंगें थे लूटा करते
कंचे चटकाते और
गुल्ली डंडा भी खेलते
और शाम को यारों के संग
खोमचे पे चाट खाया करते थे

गोल गप्पे का खट्टा पानी
मुंह से लार सी टपक जाती थी
दही बढे पर मीठी चटनी
डालते ही कैसे छिटक जाती थी
आइस क्रीम गिरा कर कमीज़ पर
शाम को माँ की डांट खाया करते थे

साइकल पर गलियों के
चक्कर लगा कर
डंडे पे अपने
यार को बिठा कर
कभी तलैया किनारे और
कभी यार के घर जाया करते थे

होम वर्क का बहाना बना कर
पिक्चर देखने का वो मज़ा
पकड़े गए तो पिताजी से
मिलती थी रात को सज़ा
स्कूल जाने का कह कर
मेला देखने निकल जाया करते थे

कालेज कि कैंटीन में
लड़कियों से गप्पें लडाना
कभी उनके पैसों से उन्हें ही
चाय, समोसा खिलाना
कभी जेब जो खाली होती थी तो
कैंटीन वाले को पटाया करते थे

नौकरी की तलाश में
जूतों का घिस जाना
मोटर साइकिल में पेट्रोल नहीं
आज पैदल पड़ेगा जाना
इतनी फुरसत होती थी के
दोपहर को खाना खाने घर पे आया करते थे

शादी के बाद हनीमून का
एक तेज गाड़ी के स्टेशन सा गुज़र जाना
बच्चों का लग गया तांता
कैसे ये कभी ना जाना
बच्चों को उंगली पकड़ा कर
दूर दूर तक घुमाया करते थे

अब इस बड़े से शहर में अपनी जवानी
और बच्चों का बचपन जाने कहाँ खो गया
दौड़ भाग कि जिंदगी में
उम्मीदों का सपना खुद ही सो गया
अब वो दिन हवा हुए
जब बन्ने मियाँ फाख्ता उड़ाया करते थे

कभी मिली फुरसत तो सोचेंगे
पर अभी मिला नहीं है वक़्त
शायद अब मरने पर ही
मिल सकेगी ये कम्बख़त
फुरसत................

Monday, July 6, 2009

उसको मैंने क्यूं याद किया

ऐसी क्या मजबूरी थी
ऐसा क्या उपकार किया
जिसने मुझे बरबाद किया
उसको मैंने क्यूं याद किया

इक दिल था तेरे पास मेरा
उसको भी न तू पहचान सकी
कभी यहाँ गिरा कभी वहाँ गिरा
बस टूट गया और हार गया

आहें तो भरीं शिकवे न किये
तिल तिल कर यूं हम जलते रहे
तुझे हंसते देख औरों के संग
झूठी खुशिओं का इज़हार किया

तू मेरी हो न सकी हमदम
दूजों की सजाई तूने महफ़िल
गैरों की बाहों में जा तूने
मेरी चाहत से खिलवाड़ किया

आंसू ना बहे पर जां तो गयी
अब जीने की कोई ख्वाइश ही नहीं
जब तू ना रही तो कुछ भी नहीं
तेरी खुशियों को स्वीकार किया

कभी आन पड़े जो मुसीबत भी
दे देना हलकी दस्तक सी
मैं खड़ा मिलूंगा उसी मोड़ पर
जहां रुखसत तुझको यार किया

Sunday, July 5, 2009

कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

मुश्किलों से मिलते हैं ये लम्हे साथ साथ
आओ करें आज जी भर के मुलाक़ात
अब यूं बार बार जाने की जिद ना करो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

दुनिया की बातें तो हमने बहुत हैं कर लीं
पर दिल है के इन बातों से भरता ही नहीं
अब कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी भी कहो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

दिन, हफ्ते और महीने गुज़र जायेंगे
ऐसे लम्हे ना जाने फिर कब हाथ आयेंगे
आओ इन पलों को आज जी भर के जी लो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

तुम पास हो तो क्यूं आता नहीं यकीं
काश वक़्त आज थम जाये बस यहीं
आज ना जाने का कोई बहाना ही ढूढ़ लो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

पहलू भी बदलती हो तो लगता है तुम बस चली
अभी तो सिर्फ दोपहर हुई है शाम ढली भी नहीं
मेरे तपते दिल मैं इक बारिश बन कर बरसो
कुछ देर और मेरे पास यूं ही बनी रहो

तुम्हारे मन मैं उठे हैं आज बहुत से ख़याल
मेरे भी तन में उठें हैं आज बहुत से बवाल
तनमन एक हो जाने दो बस अब कुछ और ना कहो
कुछ और देर मेरे पास यूं ही बनी रहो

Thursday, July 2, 2009

कभी आते जाते ले जाना

तुम जब मुझसे मिलने आती थी
अपना कुछ न कुछ सामान
जान बूझ कर छोड़ जाती थी
तुम्हारा वो सब सामान
अब भी मेरे घर में रखा है
कभी आते जाते ले जाना

यादों के सहारे
तो जिंदगी नहीं काटी जा सकती
अपनी वो सब मुलाकातें
अब यादें बन कर
मेरे घर के हर कोने में पढ़ी हैं
कभी आते जाते ले जाना

तुमने प्यार का जो इज़हार किया था
कुछ लम्बे लम्बे ख़त लिख कर
तुम्हारे कुछ ख़त पड़े हैं
मेरे तकिये के नीचे
कभी आते जाते ले जाना

तुमने कभी मेरी जिंदगी
महकाई थी फूलों सी
वो कुछ सूखे फूल रखे हैं
मेरी जिंदगी की किताबों में
कभी आते जाते ले जाना

लम्हा लम्हा चुरा कर
कुछ वक़्त साथ था हमने गुज़ारा
इक पल के लिए भी
दूर रहना ना था गवारा
वो वक़्त अब थमा सा खडा है
मेरे घर के गलियारों में
कभी आते जाते ले जाना

मेरे नाम के साथ
अपना नाम लिखा था तुमने
घर की दीवारों पर
घर की राहों पर, आँगन मैं, चिनारों पर
वो नाम अब धुल की परत में ढक गए हैं
कभी आते जाते ले जाना

मेरा भी कोई सामान
शायद गलती से तुम्हारे साथ
चला गया होगा
दिल खो सा गया है
शायद तुम्हारे पास बेज़ार सा पड़ा होगा
कभी आते जाते दे जाना

Tuesday, June 9, 2009

कहीं ये प्यार तो नहीं

रातों में तारे गिनता हूँ
खाबों को दिन में बुनता हूँ
इक इक याद को चुनता हूँ
संगीत हवा में सुनता हूँ

कहीं ये प्यार तो नहीं

ख़यालों के सागर में बहता हूँ
बस अपनी धुन में रहता हूँ
कभी अपनी तुझसे सुनता हूँ
कभी तेरी तुझसे कहता हूँ

कहीं ये प्यार तो नहीं

कोई जान से प्यारा लगता है
जीने का सहारा लगता है
इंतज़ार सा किसी का रहता है
बेकरार सा दिल भटकता है

कहीं ये प्यार तो नहीं

होश में जब भी रहता हूँ
बस आहें भरता रहता हूँ
शक की नज़रें उठती हैं
जब कुछ भी नहीं मैं कहता हूँ

कहीं ये प्यार तो नहीं

सामने जब वो आती है
इक बिजली सी गिर जाती है
बेजान सा दिल धड़कता है
दिल पे छुरी चल जाती है

कहीं ये प्यार तो नहीं

Monday, June 8, 2009

वादा ना तोड़

वादा ना तोड़ 
वादा तो वादा है
वादे से राहत है
वादे से चाहत है
वादे से आशा है
वादे से निराशा है
वादा जीवन की उम्मीद है
वादा जीवन का संगीत  है
कभी वादे भी टूट जाते है
कभी साथी भी छूट जाते है
वादा किया तो निभाना
यही दस्तूर है पुराना

Saturday, June 6, 2009

तेरा ख़याल आता है

तेरा ख़याल आता है तो बस आता ही चला जाता है
आहट भी नहीं होती दिल में इक खंजर सा चल जाता है

कोई शिकवा नहीं के तू मेरे दिल में घर कर बैठी है 
भला अपनों पर कोई ऐसे इल्जाम लगाता है

इसके पहले के तेरे ख्यालों को में समेट सकूं
वक़्त है के हाथ से फिसल सा जाता है

तेरे ख्यालों को सहेज के रखने की चाह तो बहुत होती है
हाथ कलम, दवात और कागज़ तक नहीं पहुँच पाता है

तेरे ख़याल तो बहुत आते हैं पर कोई खबर नहीं आती
डाकिया भी अपना सा मुंह लेकर चला आता है

ख्यालों से निकलने पर नब्ज़ रुक सी जाती है
हकीम इसे लाइलाज कह के दवा देने से कतराता है

ख्यालों के सहारे तो जिन्दगी काटनी मुश्किल होगी
कभी आके तो मिल तुझे देखने को दिल ललचाता है

इश्क जब होता है

इश्क जब होता है सरे आम होता है
इश्क जब होता है सुबोह शाम होता है

इश्क वो नहीं हो जो आधा अधूरा 
इश्क में तो पूरा ही काम तमाम होता है

इश्क कभी किसी का मोहताज हुआ है क्या
इश्क में गरीब और अमीर सामान होता है

इश्क की राहों मैं बिछा देती है कांटे दुनिया
इश्क में काटों पर भी चलना आसान होता है

बदनामियों के डर से डरने वाले
इश्क ना करने वाला भी तो बदनाम होता है

इश्क करेंगे तो बनाम तो होंगे ही
बदनामियों से बचना क्या आसान होता है 

इश्क नहीं किया तो क्या राहों में कांटे नहीं होंगे
इश्क करने से जन्नत का रास्ता आसान होता है

इश्क के बिना भी बीत जाती हैं बहुत सी जिंदगियां
पर उनके लिए मरना क्या इतना आसान होता है

जो इश्क नहीं करते वो क्या ख़ाक जिया करते हैं
इश्क करने वालों पर तो खुदा को भी गुमान होता है

Wednesday, May 27, 2009

आज वो सब कह लेने दे

मुझे आज वो सब कह लेने दे 
कुछ देर और अपने पास रह लेने दे

बरसों सी छाये थे बादल ग़मों के
 ख़ुशी को अब आंसू बन के बह लेने दे

डर सा लगता है धुप के इन सायों से 
अपने आँचल की छाओं को थोडा सह लेने दे

हम दोनों जानते हैं के कुछ देर में बिछड़ना होगा 
कभी ना बिछडेंगे झूठ मूठ ही कह लेने दे

कल भी शाम होगी बस तू ना पास होगी 
चले जाना, बस मेरे सपनों के महल को तो ढह लेने दे

मुझे आज वो सब कह लेने दे 
कुछ देर और अपने पास रह लेने दे

 

Tuesday, March 3, 2009

I was surely not born with a silver spoon in my mouth

When I was born in 1954, I certainly did not have a silver spoon in my mouth but yes, I was lucky to be surrounded by musical instruments, no..... my dad or no one in the family was a musician, in fact my dad owned a musical instrument shop in Gwalior, MP, India.

I think my dad would have used a shaker, manjeera or cymbal to amuse me when I was crying instead of a rattling toy and probably that was the beginning of musical journey in my life.

when I grew up a bit, I remember we used to stay above the shop and I could visit there 24/7 to disturb my dad when he was repairing a harmonium or tuning an instrument or attending a customer, to pacify me he would hand me a bamboo flute and ask me to go away. I think because of that reason, Flute was the first instrument I started playing.

I did not have a formal teacher but I could learn a few melodies by my own in my own style. My dad was very impressed with me and he sent me to a family friend who used to play flute for pleasure, he taught me a few songs, I noticed he was playing some wrong notes in a melody, I told this to my dad, he wanted me to shut my mouth but I could not resist, on my next visit to teacher, I played him the right notes of that melody, he praised my knowledge and never taught me again.....

We moved to a bigger house when I was in 5th standard, and then I could not visit my shop frequently and my dad wanted me to give more time to school and homework.

Time for a break...will be back soon with more